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________________ वह नहीं होगा, मनुष्य का कल्याण नहीं जीवन में सच्चा होगा । इस प्रकार ऊपर से लादी गयीं चारित्र-बल उत्पन्न साधनाएँ जीवन को मंगलमय नहीं बना सकतीं, होना चाहिए और और ऊपर से, कल्पना से लादी हुई जब तक वह नहीं आवश्यकताएँ भी जीवन को सुखमय नहीं होगा, मनुष्य का बना सकतीं । जो पथिक जितनी ही कल्याण नहीं होगा। | आवश्यकताएँ कम करके और जितना हल्का होकर जीवन की यात्रा तय करेगा, वह ऊपर से लादी गयीं | उतनी ही अधिक सरलता से प्रगति कर साधनाएँ जीवन को | सकेगा । मंगलमय नहीं बना । अहिंसा, सत्य आदि की साधनाओं सकती। | को हमें जीवन का अंग बनाना है । और उन्हें जीवन का अंग बनाने में जो कठिनाइयाँ हैं उन्हीं को हल करने के लिए अपरिग्रह-व्रत की जीवन में आवश्यकता है । यह साधक-जीवन का अनिवार्य नियम है । वे कठिनाइयाँ क्या हैं ? यही कि हम मन की हर मांग स्वीकार कर लेते हैं, तथा संग्रह कर लेते हैं और संग्रह करते-करते इतनी दूर चले जाते हैं कि उसकी मर्यादा को भूल जाते हैं और खयाल ही नहीं रहता कि कहाँ तक संग्रह करें ? इसके अतिरिक्त जो संग्रह किया है, उसका क्या और कैसे उपयोग करना है ? यह भी नहीं सोचते । संग्रह की सीमा और संग्रह का उद्देश्य ध्यान में रहता है तो हम समझते हैं कि हम जीवन के आदर्श को निभा रहे हैं, किन्तु जब इन दोनों बातों को भूल कर केवल संग्रह ही संग्रह करते चले जाते हैं, तब ___ 100
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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