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________________ सामा मझा खूब धन मिलेगा, वारे-न्यारे हो जाएँगे ! फिर 26 क्या था । दूसरे दिन हजारों की संख्या में सामान्य होकर ही भिखारी एक बाड़े में इकट्ठे हो गए । राजा जैसा दाता हो, तो फिर भिखारियों की क्या | जा सकता है । कमी ? 6 राजा अपने मंत्री को साथ में लेकर, शान के साथ वहाँ जाकर खड़ा हो गया । तब उस विद्वान् सन्त ने कहायह राजशाही और मंत्रीशाही रहने दो और साधारण आदमियों की तरह खड़े हो जाओ । सामान्य होकर ही सामान्य को समझा जा सकता है । दान का कार्य प्रारम्भ हुआ । बासी रोटियों के टुकड़े भिखारियों को मिलने लगे । भिखारी देख-देख कर हैरान रह गए । इतनी बड़ी घोषणा के बाद यह दान ? और वह भी राजा की ओर से ? मगर क्या किया जा सकता है ? राजा से लड़ा भी तो नहीं जा सकता । जो भाग्य में है, वही तो मिलेगा। भिखारी रोटियों के टुकड़े ले-लेकर बाहर निकलने लगे । सन्त फाटक पर खड़े थे । भिखारी निकले तो सन्त ने उनसे कहा- यह रोटी का टुकड़ा मुझे दे दो, तो मैं तुम्हें राजा बना हूँ । भिखारी कहने लगे- 'महात्मन् ! क्यों उपहास करते हो ?' कोई भी भिखारी अपना रोटी का टुकड़ा देने को तैयार न हुआ । वे समझ रहे थे कि राजा बनाने का लोभ देकर यह हजरत रोटी का टुकड़ा भी छीन लेना चाहते हैं । भिखारी तो आखिर भिखारी ही ठहरे, उनकी कल्पना दूर तक कैसे पहुँच सकती थी ? और वे अपने-अपने रोटी के टुकड़े को छाती मि 90
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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