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________________ से त्याग कराना चाहता है; किन्तु स्वयं त्याग नहीं करता, उसका उपदेश जनता के हृदय पर असर नहीं डाल सकता । उनके उपदेश जनता के हृदय को को सुनकर जनता उस समय उनकी विद्वत्ता बदलने की कला तो की कायल तो हो जाती है, मगर स्थायी रूप त्यागी में ही होती है। से उनके मन पर उसका प्रभाव नहीं पड़ पाता । विद्वत्ता वाणी से प्रकट होती है और त्याग आचरण से । कोई विद्वान् है, बाल की खाल निकाल रहा है, तो वह अपने प्रबल तर्कों से दुनियाँ का मुँह बन्द कर सकता है, परन्तु जनता के हृदय को नहीं बदल सकता । जनता के हृदय को बदलने की क्षमता तो त्यागी में ही होती है । जो जिस चीज को स्वयं नहीं छोड़ सकता, वह दूसरों से उसे कैसे छुड़ा सकता है ? भगवान् महावीर ने पहले स्वयं जनता के सामने अपना उदाहरण रखा । जो एक दिन महलों में रहते थे और प्रातःकाल होते ही जिनसे हजारों आदमी दान पाकर मुक्त कंठ से जिनकी प्रशंसा करते थे, उन्होंने दीक्षा लेने का विचार किया । जब विचार किया, तो दीक्षा लेने से पहले अपना सारा वैभव भी लुटा दिया और इस प्रकार हल्के होकर जनता के सामने मैदान में आए । राजकुमार से भिक्षुक बनकर जनता के बीच में आए तो एक ही आवाज में हजारों आदमी उनके पीछे चल पड़े । मतलब यह है कि परिग्रह वृत्ति का त्याग करके ऐच्छिक गरीबी को धारण किए बिना ही यदि कोई संसार की समस्याओं को हल करना चाहता है, तो केवल निराशा ही उसके पल्ले पड़ सकती है । बिना त्याग के जीवन शून्यवत् है । 86
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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