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________________ १५६ ढाल वलता भाखे श्री वीर जिनन्द, इण बातां रो नहीं मिले जी सम्बन्ध । Jain Education International हुई नहीं होवे नहीं होसी नहीं बात, आऊखो नी बधे एक समय तिलमात || थें० ॥ संघ सघला रे हुई रंग री रली, पुण्य योगे प्रभुजी री सेवा भली । 'ऋषि रायचन्द' विनवे जोड़ी हाथ, थे करुणा सागर वाजो कृपाजी नाथ ॥ थे० ॥ नागौर शहर में कियो जी चौमास, दिज्यो प्रभुजी म्हांने मुक्ति नो वास । हूँ सेबक तुम साहिब इन्द्रभूति गौतम (परिशिष्ट) स्वाम, अवर देवांसु म्हारे नहीं कोई काम || || धणी । शासन नायक श्री महावीर, तीरथनाथ त्रिभुवन पावापुरी में कियो चरम चौमास, हुई मोक्षदायक री महिमा घणी ॥ गौतम ने मेल दियो महावीर, देवशर्मा प्रतिबोधवा ||टेर || उत्तराध्ययन रा अध्ययन छत्तीस, कार्तिक वदी अमावस्ये कहाँ । एक सौ ने वली दश अध्ययन, सूत्र विपाक तणा लह्या ॥ गौ० ॥ पोसा कीधा श्रीवीर जी रे पास, देश अठारानां राजीया । नव मल्ली ने नवलच्छी जी राम, वीर ना भगता जी बाजीया ॥ गौ० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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