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'प्राणिमात्र प्रभु के बेटे' - यह धर्म-कथन है, प्राणी-प्राणी में यही भाव, समता का धन है । समता के इस बंधुभाव पर धर्म टिका है - बंधु भाव ही अतः विश्व का सत्य परम है ।।
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