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नौवाँ अध्याय .................. ................
१६-शेष सभी परीषह वेदनीय कर्म के उदय से होते हैं।
१७---एक साथ एक आत्मा में एक से लेकर १९ परीषह तक विकल्प से सम्भव हैं।
१८-सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहारविशुद्ध, सूक्षमसम्पराय और यथाख्यात—यह पाँच प्रकार का चारित्र है।
१९--अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त-शय्यासन और कायक्लेश--ये ६ बाह्य तप हैं।
२०–प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान-ये ६ आभ्यन्तर तप हैं।
२१- ध्यान से पहले के आभ्यन्तर तपों के अनुक्रम से नौ, चार, दस, पाँच और दो भेद हैं।
२२-आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार और उपस्थापन-यह नौ प्रकार का प्रायश्चित्त है।
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