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आठवाँ अध्याय
आठवाँ अध्याय
१ - - मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय और योग; ये
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पाँच बन्ध के हेतु . हैं।
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२
- कषाय के सम्बन्ध से जीव कर्म के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है।
३ ―― वह बंध कहलाता है।
४ --- प्रकृति, स्थिति, अनुभाव और प्रदेश, ये चार बंध के प्रकार हैं।
५ - पहलां अर्थात् प्रकृतिबन्ध, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्क, नाम, गोत्र और अन्तरायरूप है।
६ - उपर्युक्त आठ मूलप्रकृतियों के अनुक्रम से पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, बयालीस दो और पाँच भेद हैं।
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(१) मतिज्ञानावरण, (२) श्रुतज्ञानावरण (३) अविधिज्ञानावरण, (४) मनः पर्यायज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण: ये पाँच भेद ज्ञानावरण के हैं।
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