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________________ सातवाँ अध्याय २९---अप्रत्यवेक्षित और अप्रमाजित में मल आदि का उत्सर्ग, अप्रत्यवेक्षित और अप्रमाजित वस्तु का आदन-निक्षेप, अप्रत्यवेक्षित और अप्रमार्जित संस्तार का उपक्रमण, अनादर और स्मृति का अनुपस्थापन, ये पाँच अतिचार पौषधव्रत के हैं। ३०–सचित्त आहार, सचित्तसम्बद्ध आहार, सचित्तसंमिश्र आहार, अभिषव-मादक द्रव्य का आहार और दुष्पक्व-अधपका या ज्यादा पका आहार; ये पाँच अतिचार उपभोग-परिभोग-परिमाण-व्रत के हैं। ३१–सचित पर निक्षेप, सचित्तपिधान, परव्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम; ये पांच अतिचार अतिथिसंविभाग-व्रत के हैं। ३२-जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदानकरण; मारणान्तिकी संलेखना के ये पाँच अतिचार हैं। ३३-अनुग्रह के लिए अपनी वस्तु के स्वत्व-ममत्व का त्याग करना दान है। ३४–दान की विधि, द्रव्य–देयवस्तु, दाता और पात्र-लेने वाले की विशेषता से दान की विशेषता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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