SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवाँ अध्याय २४-क्षेत्र-कृषि आदि के योग्य भूमि और वास्तु = गृह के प्रमाण का अतिक्रम, हिरण्य = चांदी ओर सुवर्ण के प्रमाण का अतिक्रम, धन और धान्य के प्रमाण का अतिक्रम, दासी-दास के प्रमाण का अतिक्रम, एवं कुप्य=अनेक प्रकार के बर्तन, वस्त्र आदि सामान के प्रमाण का अतिक्रम, ये पाँच अतिचार पाँचवें अणुव्रत के हैं। २५–ऊर्ध्वदिशा–व्यतिक्रम, अधोदिशा-व्यतिक्रम, तिर्यग्दिशा-व्यतिक्रम, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तर्धान = गृहीत दिशामर्यादा का विस्मरण; ये पाँच अतिचार छठे दिग्विरतिव्रत के हैं। २६-आनयनप्रयोग, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप, ये पाँच अतिचार सातवें देशविरतिव्रत के हैं। २७---कन्दर्प, कौत्कुच्य मौखर्य, असमीक्ष्य-अधिकरण और उपभोग का अधिकत्व ये पाँच अतिचार आठवें अनर्थदण्ड विरमण व्रत के हैं। २८--कायदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, मनोदुष्प्रणिधान, अनादर और स्मृति का अनुपस्थापन; ये पाँच अतिचार सामायिक व्रत के हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy