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............... छठा अध्याय ............५९
१५–कषाय के उदय से होने वाला तीव्र आत्म-परिणाम चरित्र-मोहनीय कर्म का बन्धहेतु है।
१६–बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह, ये नरकायु के बन्ध हेतु हैं।
१७-माया तिर्यंच-आयु का बन्ध-हेतु है।
१८-अल्प-आरम्भ, अल्प-परिग्रह, स्वभाव की मृदुता और स्वभाव की सरलता, ये मनुष्य-आयु के बन्धहेतु हैं।
१९-शीलरहित और व्रतरहित होना सभी आयुष्यों के बन्धहेतु हैं।
२०–सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बाल-तप, ये देवायु के बन्धहेतु हैं।
२१–योग की वक्रता और विसंवाद, ये अशुभ नामकर्म के बन्ध-हेतु हैं।
२२----इसके विपरीत अर्थात् योग की अवक्रता और अवि-संवाद शुभ नामकर्म के बन्धहेतु हैं।
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