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पाँचवाँ अध्याय ३०--जो अपने मूल स्वरूप से नाश को प्राप्त नहीं होता है, वही नित्य है।
३१-वस्तु में अनेक धर्म होते हैं। उनमें जो मुख्य रूप से वाच्य धर्म हो, वह अर्पित और जो गौण होने के कारण तत्क्षण अवाच्य धर्म हो, वह अनर्पित है। इन दोनों नयों से वस्तु व्यवहार की सिद्धि होती है।
३२-स्निग्धत्व और रुक्षत्व से बन्ध होता है।
३३–एक गुण अर्थात् एक अंश वाले परमाणुओं का बन्ध नहीं होता।
३४-गुण की समानता होने पर भी सदृश पुद्गलों का बंध नहीं होता।
३५-किन्तु दो अधिक आदि गुण वालों का ही बंध होता है।
३६-बन्ध के समय सम और अधिक गुण, सम तथा हीन गुण को परिणमन करते हैं।
३७-द्रव्य, गुण-पर्याय वाला है। __३८-कोई-कोई आचार्य काल को द्रव्य मानते हैं।
३९-वह कालद्रव्य अनंत समय वाला है। यद्यपि वर्तमान काल एक समयात्मक है परन्तु भूत, भविष्यत्, वर्तमान की अपेक्षा अनंतसमय वाला है।
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