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________________ - चौथा अध्याय ३८-आरण और अच्युत से ऊपर से ऊपर नौ ग्रैवेयक; चार विजयादि अनुत्तर विमान और सर्वार्थसिद्ध में क्रम से एक-एक सागरोपम बढ़ती हुई स्थिति आयु है। ३९-सौधर्म देवलोक में जघन्य स्थिति एक पल्योपम की तथा ऐशान में एक पल्योपम से कुछ अधिक जघन्य स्थिति है। ४०-सानत्कुमार में जघन्य स्थिति दो सागरोपम की है। ४१ ---माहेन्द्र में दो सागरोपम से कुछ अधिक है। ४२---पहिले पहिले कल्प की उत्कृष्ट स्थिति आगे आगे के कल्पों में जघन्य स्थिति है। सर्वार्थसिद्ध में जघन्य स्थिति नहीं होती। ४३-इसी प्रकार दूसरे तीसरे आदि नरकों में भी जघन्य आयु समझ लेनी चाहिए। ४४-पहले नरक में दस हजार वर्ष की जघन्य आयु है। ४५-भवनवासियों में भी दस हजार वर्ष का जघन्य स्थिति है। ४६--व्यंतरदेवों की भी जघन्य स्थिति इतनी ही है। ४७-व्यंतरों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की है। ४८-सूर्य और चन्द्र ज्योतिष्क इन्द्रो व ज्योतिषकों की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम से कुछ अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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