________________
चौथा अध्याय
३९ ३०-भवनवासियों के दक्षिणार्द्ध = मेरु से दक्षिण की ओर के अधिपातियों = इन्द्रों की उत्कृषट स्थिति डेढ़ पल्योपम की होती है।
- ३१–शेष के अर्थात् उत्तरार्द्धपति इन्द्रों की उत्कृष्ट स्थिति पौने दो पल्योपम की हैं।
___३२-असुरकुमार के दक्षिणार्द्धपति इन्द्रों की एक सागरोपम तथा उत्तरार्द्धापति इन्द्रों की एक सागरोपम से कुछ अधिक उत्कृष्ट स्थति है।
३३-सौधर्मादि देवलोकों में निम्न क्रमानुसार स्थिति जानना चाहिए।
३४-सौधर्म देवलोक के देवों की उत्कृष्ट आयु दो सागरोपम की है।
३५-ऐशान देवलोक के देवों की दो सागरोपम से कुछ अधिक उत्कृष्ट स्थिति है।
३६–सानत्कुमार देवलोक के देवों की सात सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है।
३७-माहेन्द्र देवलोक में सात सागरोपम से अधिक, ब्रह्मलोक में दस, लान्तक में चौदह, महाशुक्र में सतरह, सहस्रार में अठारह, आनत एवं प्राणत में बीस और आरण एवं अच्युत में बाईस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है।
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org