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चौथा अध्याय
____ २२-किंतु गति, शरीर का परिमाण, परिग्रह और अभिमान, इन विषयों में ऊपर ऊपर के देव हीन हैं।
२३–सौधर्म और ऐशान में पीतलेश्या, सानत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या और लान्तक से ले कर सर्वार्थसिद्ध तक शुक्ललेश्या होती है।
२४-ौवेयकों से पहिले के स्वर्ग कल्प कहलाते हैं, अर्थात् इन्द्रादिक भेद वाले हैं।
२५---जो पाँचवें ब्रह्मलोक स्वर्ग के अन्त में रहते हैं, वे लोकान्तिक देव हैं।
२६-सारस्वत, आदित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध मरुत् ओर अरिष्ट ये नौ प्रकार के लोकान्तिक देव हैं।
२७—विजयादिक चार विमानों के देव द्विचरम अर्थात् दो बार मनुष्य जन्म ले कर मोक्ष पाते हैं ओर सर्वार्थसिद्ध के देव केवल एक भव धारण कर मोक्ष पाते हैं।
२८—देव, नारक और मनुष्यों के अतिरिक्त शेष सब जीव तिर्यंच हैं।
२९-अब स्थिति = आयु का वर्णन करते हैं।
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