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________________ दूसरा अध्याय २१ ३४ - जरायु से पैदा होने वाले, अंडे से पैदा होने वाले तथा पोतज जीवों का गर्भ जन्म होता है। ३५ - नारकों और देवों का उपपात जन्म होता है। ३६ - पृथ्वीकाय आदि शेष जीवों का सम्मूर्छन जन्म होता है। ३७―― औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कर्माण - ये पाँच प्रकार के शरीर होते हैं। ३८ - उक्त पाँचों शरीरों में आगे-आगे के शरीर पूर्व-पूर्व शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म हैं। ३९ -- तैजस के पूर्ववर्ती तीन शरीरों में पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तर- उत्तर शरीर प्रदेशों— स्कन्धों की अपेक्षा से असंख्यात गुण अधिक होते हैं। ४० - आगे के दो शरीर - तैजस और कार्मण पहिले के शरीरों की अपेक्षा अनंतगुण प्रदेश वाले हैं। अर्थात् आहारक से तैजस के और तैजस से कार्मण के प्रदेश अनंतगुने होते हैं। ४१ - तैजस और कार्मण शरीर प्रतिघात - बाधा से रहित हैं। ४२ – ये दोनों शरीर आत्मा के साथ अनादि काल से संबन्ध रखने वाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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