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दूसरा अध्याय
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दूसरा अध्याय १–औपशमिक, क्षायिक, मिश्र–क्षायोपशमिक, औदयिक और परिणामिक ये पाँच भाव जीव के स्वतत्व हैं।
२-उक्त पाँच भावों के अनुक्रम से दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद हैं।
३-औपशमिक भाव के औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र ये दो भेद हैं।
४-केवलज्ञान, केवलदर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य तथा सम्यक्त्व और चारित्र ये नौ भेद क्षायिकभाव हैं।
५-चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, दानादि पाँचलाब्धियाँ, क्षायोपशमिक, सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम, ये अठारह भेद क्षायोपशमिक भाव के हैं।
६–चार गति, चार कषाय, तीन वेद, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व, छह लेश्या-इस तरह कुल मिलाकर इक्कीस भेद औदयिक भाव के हैं।
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