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दसवाँ अध्याय
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दसवाँ अध्याय १.---मोह के क्षय से और फिर ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय के क्षय के केवल ज्ञान प्रकट होता है।
२-बन्धहेतुओं के अभाव और निर्जरा से कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होता है।
३--सम्पूर्ण कर्मो का क्षय होना ही मोक्ष है।
४—क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकज्ञान, क्षायिकदर्शन और सिद्धत्व भाव के सिवाय औपशमिक आदि भावों तथा भव्यत्व के अभाव से मोक्ष प्रकट होता है।
५-सम्पूर्ण कर्मों के क्षय होने के बाद मुक्तजीवन तुरन्त ही लोक के अन्त तक ऊँचा चला जाता है।
६-पूर्व के प्रयोग से, संग के अभाव से, बन्धन के टूटने से और गति = मोक्षार्थ होने वाली गति के परिणाम से मुक्तजीव ऊँचा जाता है।
७-क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या, अल्प-बहुत्व-इन बारह प्रकारों से सिद्ध जीवों का विचार करना चाहिए।
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