________________
७२ सत्य दर्शन
भिक्षु सहज भाव से बाले–“रुपए-पैसे तो पास में हैं नहीं और रखकर करना भी क्या है ? सिक्के तो संसार में बिखरे पड़े हैं। जहाँ कहीं पहुँचेंगे, वहीं बिखरे मिलेंगे।"
वह बोला-"कैसे ? आपका निर्वाह कैसे होगा ?"
इस प्रश्न के उत्तर में भिक्षु ने जो कहा, बहुत ही सुन्दर था। भिक्षु बोले-"मुझे मनुष्य की पवित्रता में, मनुष्य की उदारता में विश्वास है, और इसी विश्वास के बल पर मैं दुनिया भर में घूमूंगा और जहाँ भी जाऊँगा, मनुष्य के सिक्के बिखरे मिलेंगे।" __वह बोला-"सचमुच आपका यह विश्वास है ?"
भिक्षु ने कहा-"हाँ, निस्सन्देह मुझे विश्वास है कि मनुष्य अपने विचारों ने पवित्र होता है और उदार होता है और जहाँ भी मैं पहुँचूँगा, मुझे मनुष्य की उदारता का वरदान मिलेगा।"
और जब हम भी आपके ब्यावर से, चौमासा उठने पर चलेंगे, तो क्या आगे के लिए भोजन-पानी बाँधकर चलेंगे? अथवा कोई व्यवस्था करके चलेंगे? श्रावकों की टोली साथ लेकर चलेंगे कि वे बना-बना कर हमें बहराते जाएँ ? नहीं, हमें भी जनता की उदारता पर विश्वास है कि कोई न कोई माई का लाल मिलेगा और वह अपने हाथ से दान देगा। कोई न कोई बहिन मिलेगी, जो अपने भोजन का कुछ भाग बड़े प्रेम से जरूर देगी।
तो मानव-जगत् के प्रति अविचल विश्वास लेकर चलो कि हर मनुष्य के पवित्र विचार हैं और उदार भाव हैं । मैं जहाँ कहीं जाऊँगा, उसकी जागृति करूँगा और अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सकूँगा । नहीं करूँगा, तो भी हजार बार वे मेरी आवश्यकताओं को पूरा कर देंगे। संसार में जितने प्राणी हैं, सब ऊर्ध्वगमनशील हैं। ज्ञाता-सूत्र में आत्मा का स्वभाव बतलाने के लिए एक उदाहरण आता है
"तँबे पर मिट्टी का लेप लगाकर तालाब में छोड़ दिया जाए, तो वह कितनी ही गहराई में क्यों न चला जाए, जब तक बन्धन में है, तभी तक दबा रहेगा। बन्धन हटते ही, संभव है आपको हाथ हटाने में देर लग जाए, पर उसके ऊपर आने में देर नहीं लगेगी।"
सन्त कबीर ने भी कुछ हेर-फेर के साथ इसी रूपकं को यों कहा है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org