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________________ ४८ / सत्य दर्शन अर्थात् सत्य का मार्ग छुरे की धार के समान है, तलवार की धार के समान तीखा है। जिसे तलवार की धार पर चलना है, वह असावधानी से नहीं चलेगा । उस पर चलने के लिए बड़ी तैयारी की आवश्यकता होती है, अपने-आपको एकाग्र और तन्मय बनाने की आवश्यकता है। तलवार की धार पर चलने में जरा भी असावधानी हो जाए, तो वह धार पैर में चुभ जाती है, रक्त बहने लगता है और मनुष्य पीड़ा के वशीभूत हो जाता है। वह ऋषि आगे कहता है कि-यह मार्ग, वह मार्ग है कि बड़े-बड़े विद्वान् भी इसको दुर्गम कहते हैं । अतएव तुम अगर इस मार्ग पर आना चाहते हो, तो तैयारी करके आओ, विचार और चिन्तन का बल लेकर आओ। असावधान होकर चलने को उद्यत होओगे, तो मार्ग नहीं मिलेगा और भटक जाओगे। गीता में कहा है कि किं कर्म किमकर्मेति, कवयो ऽप्यत्र मोहिताः । कभी-कभी ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है कि कर्म क्या है और अकर्म क्या है. कर्तव्य क्या है और अकर्तव्य क्या है, सत्य क्या है और असत्य क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर पाने में बड़े-बड़े विद्वान भी मोह में पड़ जाते हैं । साधारण जनता तो मोह में पड़ी है सो पड़ी है, विद्वान भी उसी श्रेणी में खड़े हो जाते हैं। वास्तव में यह उन विद्वानों का या उनकी विद्वत्ता का दोष नहीं, सत्य की दुरूहता ही उनके मोह का कारण होती है। इससे हम सत्य की असीम जटिलता का अनुमान कर सकते हैं । एक आचार्य कहते को न विमुह्यति शास्त्र-समुद्रे । सत्य का सागर असीम और अपार है। इसमें छलाँग मारना सहज नहीं है। कोई-कोई असाधरण धीवर-ज्ञानी ही इसमें छलाँग मार कर सकुशल किनारे पहुँच पाते हैं । साधारण आदमी के वश की यह बात नहीं है। __ सत्य के सम्बन्ध में पर्याप्त तैयारी के साथ जो विचार करना चाहता है, उसे सत्य के प्रति नम्र होना चाहिए। फिर जो निर्णय आए, उसके सामने अपने अहंकार को खड़ा नहीं करना चाहिए। अगर आप सत्य के आगे अहंकार को खड़ा कर देंगे, तो सत्य की झाँकी नहीं पा सकेंगे। आपके अहंकार की काली परछाई में सत्य का समुज्ज्वल रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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