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________________ सम्पादकीय यक्कृत् की पीड़ा के कारण मेरा स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी सन्मति ज्ञान पीठ के अध्यक्ष और मन्त्री की सतत प्रेरणा के कारण मुझे सत्य-दर्शन के सम्पादन का कार्य हाथ में लेना पड़ा। चिरकाल से सत्य-दर्शन की अनुपलब्धि भी मुझे कलम पकड़ने को बाध्य कर रही थी। पाठकों की ओर से सत्य-दर्शन के पुनः प्रकाशन की मांग निरन्तर बढ़ती जा रही थी । ये ही मुख्य कारण थे, इसके पुनः सम्पादन के कार्य को प्रारम्भ करने के । 1 तीर्थंकर महावीर ने साधना में सत्य को अत्यन्त महत्त्व प्रदान किया था। सत्य के अभाव में समस्त साधनाएँ निष्फल एवं निष्क्रियमानी हैं । सत्य व्रत की साधना करने वाला साधक मृत्यु को जीतकर अजर, अमर और अभय हो जाता है। भगवान महावीर की भाषा में, सत्य, लोक का सारभूत तत्त्व माना गया है। इतना ही नहीं, बल्कि सत्य को भगवान् कहा गया है। राष्ट्रपिता गाँधी जी ने पहले कहा था- "ईश्वर ही सत्य है" लेकिन फिर भगवान महावीर की भाषा को स्वीकार कर के कहा था- "सत्य ही ईश्वर है।” सत्य-दर्शन में, पूज्य गुरुदेव ने सत्य की बहु-मुखी एवं बहु-आयामी व्याख्या की है ! ६ अक्टूबर, १९९४ जैन भवन मोतीकटरा, आगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only - - विजय मुनि शास्त्री www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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