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________________ प्रकाशक की ओर से राष्ट्र सन्त, पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री अमर चन्द्र जी महाराज, अपने तेजस्वी एवं प्रखर व्यक्तित्व के चिर विश्रुत रहे हैं । उनका भौतिक रूप आज न होने पर भी अपने यशः शरीर से और अध्यात्म भाव से आज भी स्मृति के रूप में विद्यमान हैं। उनकी प्रतिभा, मेधा, कल्पना और स्मृति शक्ति के चमत्कार, आज भी जनता को चमत्कृत करते हैं । उनके काव्य, उनके निबन्ध और उनके प्रवचन उनकी कीर्ति के सुदृढ़ स्तम्भ हैं । लेखनी एवं वाणी दोनों पर उनका असाधारण अधिकार रहा। जिस किसी भी विषय को उठाते थे, उसके अन्तःस्थल तक पहुँचने की उनमें अपार शक्ति थी। श्रद्धा और तर्क दोनों का सम्यक समन्वय उन्हें सदा अभीष्ट रहा, मान्य रहा। प्रस्तुत पुस्तक "सत्य-दर्शन" उनके प्रवचनों का संकलन है। पूज्य गुरुदेव का सन् १९५० का वर्षावास, राजस्थान के प्रसिद्ध नगर व्यावर, अजमेर में हुआ था। वर्षाकाल में वैदिक परम्परा के पञ्च यम, बौद्ध परम्परा के पञ्चशील और जैन परम्परा के पञ्च व्रतों पर प्रवचन की धारा प्रवाहित की थी। नूतन शैली में, समन्वय दृष्टि से, भारतीय योग और पाश्चात्य मनोविज्ञान से विषय का विशदीकरण एवं स्पष्टीकरण किया था। उनके प्रवचन शास्त्र-मूलक, गहन और प्रवाहमय होते थे, उन्हें सुनकर लोग मुग्ध हो जाते थे। आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व सत्य-दर्शन का प्रकाशन, सन्मति-ज्ञान-पीठ, आगरा से हुआ था । सत्य-दर्शन में सत्य की व्याख्या विस्तार से की है। सत्य को सभी मत एचं पन्थ स्वीकार करते हैं । क्यों कि सत्य सब का आधारभूत तत्त्व है। सत्य-दर्शन में पूज्य गुरुदेव ने सत्य की व्याख्या सरल-सीधी भाषा में की है। सत्य-दर्शन का यह परिवर्तित एवं परिवर्द्धित द्वितीय संस्करण है। समिति की प्रार्थना पर पण्डित विजय मुनि जी शास्त्री ने द्वितीय संस्करण तैयार किया है। ६ अक्टूबर, १९९४ ओम प्रकाश जैन आगरा मन्त्री सन्मति ज्ञान पीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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