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________________ सत्य का आध्यात्मिक विश्लेषण भगवान महावीर के दर्शन में सब से बड़ी क्रान्ति, सत्य के विषय में, यह रही है कि वे वाणी के सत्य को तो महत्त्व देते ही हैं, किन्तु उससे भी अधिक महत्त्व मन के सत्य को, विचार या मनन करने के सत्य को देते हैं । जब तक मन में सत्य नहीं आता, मन में पवित्र विचार और संकल्प जाग्रत नहीं होते और मन सत्य के प्रति आग्रहशील नहीं बनता ; बल्कि मन में झूठ, कपट और छल भरा पड़ा रहता है, तब तक वाणी का सत्य, सत्य नहीं माना जा सकता । सत्य की पहली कड़ी मानसिक पावनता है और दूसरी कड़ी वचन की पवित्रता है। आज जनता के जीवन में जो संघर्ष और गड़बड़ी दिखाई देती है, चारों ओर जो बेचैनी फैली हुई है, उसके मूल कारण की ओर दृष्टिपात किया जाए, तो पता लगेगा कि मन के सत्य का अभाव ही इस विषम परिस्थिति का प्रधान कारण है। जब तक मन के सत्य की भली-भाँति उपासना नहीं की जाती, तब तक घृणा-द्वेष आदि बुराइयाँ, जो आज सर्वत्र अपना अड्डा जमाए बैठी हैं, समाप्त नहीं हो सकतीं । असत्य का प्रकरण आया तो शास्त्रकारों ने यह भी बतलाया है कि-असत्य का स्रोत कहाँ है ? अन्तर की कौन-सी वृत्तियाँ असत्य को जन्म देती हैं ? आखिर वृक्ष उगता है, तो बीज के अभाव में तो नहीं उग सकता। असत्य अगर वृक्ष है तो उसका बीज क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर शास्त्रकारों ने दिया है । असत्य के कारण : असत्य भाषण का एक कारण क्रोध है । जब क्रोध उभरता है, तो मनुष्य अपने-आप में नहीं रहता है। क्रोध की आग प्रज्वलित होने पर मनुष्य की शान्ति नष्ट हो जाती है, विवेक भस्म हो जाता है और वह असत्य भाषण करता है। आपा भुला देने वाल उस क्रोध की स्थिति में बोला गया असत्य तो असत्य है ही, किन्तु सत्य भी असत्य हो जाता है। इस प्रकार जब मन में अभिमान भरा है और अहंकार की वाणी ठोकरें मार रही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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