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________________ सत्य दर्शन / १७ लिए। खजाने का ताला बन्द करके वह चल दिया। वह सोचने लगा-"इन दो डिब्बों से तो बहुत दिन काम चल जाएगा।" चोर वापिस जा रहा था कि संयोगवश फिर राजा और मन्त्री से उसका सामना हो गया। राजा ने मन्त्री से कहा-“पूछे तो सही कि कौन है ?" मन्त्री बोला-"पूछ कर क्या कीजिएगा? यह तो वही सेठ है जो पहले मिला था और जिसने चोर के रूप में अपना परिचय दिया था।" मगर जब वह सामने ही आ गया तो राजा के मन में कौतूहल जागा और उससे फिर पूछा-"कौन ?" चोर-एक बार तो बतला चुका कि मैं चोर हूँ। अब क्या बताना शेष रह गया ? राजा-कहाँ गए थे? चोर-चोरी करने। राजा-किसके यहाँ गए ? चोर-और कहाँ जाता ? मामूली घर में चोरी करने से कितनी भूख मिटती? राजा के यहीं गया था। राजा--क्या लाये हो ? चोर-जवाहरात के दो डिब्बे चुरा लाया हूँ। राजा ने समझा-यह भी खूब है ! कैसा मजाक कर रहा है ! राजा और मन्त्री महलों में लौट आए और चोर अपने घर जा पहुँचा । सवेरे खचांजी ने खजाना खोला तो देखा कि जवाहरात के दो डिब्बे गायब हैं। खजांची ने सोचा-चोरी हो गई तो इस अवसर से मैं भी क्यों न लाभ उठा लूँ? और यह सोचकर शेष दो डिब्बे अपने घर पर पहुँचा दिए ? फिर राजा के पास जाकर निवेदन किया-"महाराज ! खजाने में चोरी हो गई और जवाहरात के चार डिब्बे चुरा लिए गए हैं।" राजा ने पहरेदारों को बुलाया । पूछा-"चोरी कैसे हो गई ?" पहरेदार ने कहा-“अन्नदाता ! रात को एक आदमी आया अवश्य था ; परन्तु मेरे पूछने पर उसने अपने-आपको चोर बतलाया। उसके चोर बतलाने से मैंने समझा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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