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________________ सत्य दर्शन / २०५ है - भोजन की । जीवन संरक्षण के लिए भोजन अनिवार्य वस्तु है। भोजन के अभाव में यदि जीवन ही नष्ट हो जाएगा, तो वे सुन्दर वस्त्र और ये झंकृत अलंकार तथा ये भव्य भवन मेरे क्या काम आएँगे। मुझे तो सबसे पहले भोजन की आवश्यकता है, क्योंकि प्राणिमात्र के प्राणों का आधार एकमात्र भोजन ही है। भूखे को कुछ भी अच्छा नहीं लगता। भूखे व्यक्ति से आप यह प्रश्न करें, कि पहले स्नान कर लो, फिर शरीर पर चन्दन का अनुलेप कर लो, फिर भोजन पर बैठना, तब वह कहेगा, कि यह सब व्यर्थ है, भोजन के अभाव में। भोजन ही मनुष्य का जीवन है। भोजन है, तो सब कुछ है, यदि भोजन ही नहीं है तो शेष सब कुछ पाकर भी यह सब मेरे क्या काम आएगा ? अतः जीवन की प्रथम आवश्यकता भोजन ही है। धर्म और कर्म - ये दोनों भी जीवन के लिए आवश्यक हो सकते हैं, तथा ये दोनों तत्व जीवन के विकास के लिए आवश्यक हैं भी, परन्तु मनुष्य धर्म और कर्म भी तभी कर सकता है, जबकि उसके उदर की पूर्ति हो चुकी हो। पेट खाली पड़ा हो और मनुष्य धर्म की साधना करने बैठ जाए, तो उसका मन उसमें नहीं लगेगा। क्योंकि भोजन पहले है और भजन बाद में। भूखा मनुष्य कब तक भजन करेगा ? कब तक माला फेरेगा ? कब तक शास्त्र स्वाध्याय करेगा ? कब तक कोई भी सत्कर्म करेगा ? भूखा मनुष्य प्रभु से यही कहेगा "भूखे भजन न होय गोपाला, यह लो अपनी कंठी माला ।" वह भूख से पीड़ित व्यक्ति गुरु की दी हुई कंठी को माला को छोड़कर भाग खड़ा होगा और भोजन की तलाश में तब तक फिरता रहेगा, जब तक उसे भोजन की उपलब्धि न हो जाए। अतः भोगी के लिए ही नहीं त्यागी के लिए भी भोजन जीवन की प्रथम आवश्यकता है। एक आचार्य ने बड़ी ही सुन्दर बात कही है, कि जब मनुष्य का पेट अन्न से भरा हो, तभी उसे धर्म और कर्म रुचिकर लगता है- "पूर्णे सर्वे जठर पिठरे प्राणिनां संभवन्ति । " पेट भरने पर ही अन्य सब बातें इंसान को सूझा करती है। यही कारण है, कि कोई भी दीर्घ तपस्वी हो, अथवा संयमी हो उसे भोजन का आधार तो लेना ही पड़ता है | श्रेयांसकुमार के दान का महत्व इसी संदर्भ में आंका जाना चाहिए । अन्य सब दानों में आहार दान का महत्त्व भी इसी दृष्टि से समझा जाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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