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________________ १५८/ सत्य दर्शन किसी के घर में, बहू बन कर एक लड़की आई। वह अपने वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार भजन करने लगी 'काली-मर्दन ! कंस-निकन्दन ! देवकी-नन्दन ! त्वं शरणम्।' "कालिय नाग का मद-मर्दन करने वाले, कंस का संहार करने वाले, हे देवकीनन्दन ! मैं तुम्हारे चरण-शरण को अंगीकार करती हूँ ।' बात यह थी कि जिस घर में वह विवाहित होकर आई थी ; उस घर में, उसके पति का नाम भी देवकीनन्दन था। अब वह लड़की 'देवकीनन्दन' शब्द का उच्चारण करे तो कैसे करे ? उसने भजन-पूजन करना ही छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद उसके एक लड़की पैदा हुई। उसका नाम चम्पा रखा गया। अब उसके भजन करने का रास्ता साफ हो गया। उसने भजन करना, शुरू कर दिया 'काली-मर्दन ! कंस-निकन्दन ! चम्पो के चाचा ! त्वं शरणम् ।। उसने 'देवकीनन्दन' की जगह 'चम्पो के चाचा' को बिठला दिया। पति को परमेश्वर समझ कर भक्ति करने की परम्परा पुरानी है, पर इस अभिप्राय से उसने ऐसा नहीं किया था। वह तो 'देवकीनन्दन' शब्द का उच्चारण करने में ही पाप समझ कर, उसकी जगह चम्पा के चाचा भजन करती थी । अन्ध-विश्वास में इतनी विवेक-बुद्धि कहाँ कि वह दूर की बात सोचे । चम्पा के चाचा, कालिय नाग का मर्दन करने वाले और कंस का संहार करने वाले किस प्रकार हो सकते हैं ? इस तर्क का उत्तर अंध-विश्वास के पास नहीं है। वहाँ इस प्रकार का तर्क ही नहीं उठता, तो उत्तर कहाँ से आएगा? एक सन्त किसी गृहस्थ के घर से आहार लेकर लौटे और थोड़ी देर बाद दूसरे सन्त ने सहज भाव से उनका नाम पूछा, तो वह बाई लज्जित-सी होकर चुप रह गई। सन्त ने फिर पूछा, तो वह नाम न बतला कर यही कहती रही कि महाराज आए थे। बहुत पूछने पर उसने बतलाया कि उनका नाम हमारे बड़ों का नाम है, इस कारण मैं माम नहीं बतला सकती। ऐसे-ऐसे वहम अगर जोर पकड़ते गए, तो भगवान् महावीर का नाम लेना भी छूट जाएगा। मगर सन्तोष की बात यही है कि लोग समझते जा रहे हैं और वह वहम कम होता जा रहा है, फिर भी गाँवों में वह चालू है, जो जीवन को अभिभूत बनाए रहता है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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