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________________ सत्य दर्शन / १५७ जाती है ? वीतराग देव का ध्यान भी काम नहीं देता ? बिना तिलक का ब्राह्मण मिल गया, तो नवकार मन्त्र बेकार हो जाता है। यह सब वहम नहीं तो क्या है ? इसी से समाज में घृणा फैल रही है । आखिरकार, जीवन के लिए धंधा करने वाले तेली, तंबोली और लकड़ी की गाड़ियाँ बड़े-बड़े शहरों में मिलती ही रहती हैं। यह तो रोज-रोज का सिलसिला है। इनसे परहेज करने पर कोई तुल जाए, तो इन वहमों के कारण एक कदम भी बाहर रखना मुश्किल हो जाएगा । तो, हम इस प्रकार के वहमों को असत्य कहते हैं। यह कल्पनाएँ और भावनाएँ असत्य रूप में हमारे सामने आई हैं और विचार करने से मालूम हो जाता है कि इनमें, जिस रूप में आज यह मानी जाती हैं, कोई तथ्य नहीं है । यह अन्ध-विश्वास है, जो सर्वत्र फैला हुआ है। एक वहम और लीजिए । पति, पत्नी का नाम लेने में हिचकिचाता है और पत्नी, पति का नाम लेना पाप समझती है। जीवन के ५०-६० वर्ष साथ रहकर गुजारे हैं, किन्तु एक-दूसरे का नाम लेना गुनाह समझा जाता है। पूछने वाले ने नाम पूछा, तो मन तो नाम आ ही गया, किन्तु वाणी पर नहीं आता है। हम तो तब जाने, जब मन में से भी नाम निकाल दिया जाए और मन में उसे प्रवेश न करने दिया जाए । रामायण पढ़ने वाले जानते होंगे कि सीता ने कई बार राम और दशरथ का नाम लिया और राम ने कई बार सीता के नाम का उच्चारण किया है। जब जटायु गिरा हुआ मिला, तो राम ने उससे पूछा- क्यों तुम्हारी यह दशा हो गई है ? तब जटायु बोला- मुझे अधिक कुछ नहीं मालूम, रावण विमान में एक स्त्री को उड़ाकर ले जा रहा था और उस स्त्री के मुख से राम और दशरथ के नाम निकल रहे थे। वह विलाप करती जा रही थी। उसके मुख से राम और दशरथ के नाम सुनकर मैं समझा- यह दशरथ के घराने की है और राम की पत्नी है। मुझ में रावण से लड़ने की शक्ति नहीं थी, फिर भी रहा नहीं गया। मैं उससे भिड़ गया और उसने मेरी यह दुर्दशा कर दी। यह कह कर जटायु मर गया । सब से पहले जटायु से ही राम को पता चला कि रावण, सीता का अपहरण करके ले गया है। अभिप्राय यह है कि रामायण के आदर्श के अनुसार सीता, राम और दशरथ का नाम लेने में गुनाह नहीं समझती थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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