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________________ सत्य दर्शन/१५३ गया है। किन्तु आँख की पट्टी खुलती है. तो उसे वे दस-बीस कोस घर में ही मालूम होते हैं। सत्य से विलग साधक की भी यही स्थिति है। वह पचास-साठ साल तक चलता रहता है, किन्तु जब आँख की पट्टी खुलती है और अज्ञान का पर्दा हटता है, तो मालम होता है कि मैंने कोई प्रगति नहीं की है और मैं जहाँ का तहाँ खड़ा हूँ। इस प्रकार न केवल कुछ व्यक्तियों का ही, वरन् सारे समाज का जीवन तेली के बैल की तरह दलदल में फँस गया है। जीवन में सचाई को ढालने का कोई प्रयत्न नहीं किया जा रहा है। छोटा बालक बाहर निकलता है और खेल कर वापिस आता है। कदाचित् उसे ज्वर आ गया और आधेक गर्मी के कारण बकने लगा, तो बस, बहम आ घेरता है। उसकी गर्मी कम करने का तो कोई प्रयास नहीं किया जाता और ज्वर उतारने की दवा नहीं दी जाती। कहा जाता है कि बच्चा अमुक के घर गया था, तो उसकी नजर लग गई। यह अमुक के घर से बीमार होकर आया है। बस, इस प्रकार मन में एक जहर की गाँठ पैदा हो जाती है और नया पाप खड़ा हो जाता है। विचारवान् लोगों के सामने एक समस्या खड़ी हो जाती है कि किसी के बालक को प्यार करें या न करें ? उसकी तारीफ करें या न करें ? यदि निन्दा की जाए कि यह तो गन्दा है, खराब है, तब भी लोग लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हैं और कहते है-हमारे बच्चे को गन्दा क्यों कह दिया? हमारा बालक तुम्हें सुहाता नहीं । बच्चे के -प्रति भी ईर्ष्या-भाव रखते हो? हमारे बालक का तिरस्कार करते हो? और यदि बच्चे को साफ-सुथरा देखकर कोई कहता है-कैसा भला, खूबसूरत और साफ मालूम होता है। तब भी लोगों को सहन नहीं होता । बच्चे की प्रशंसा को वे नजर लगाना समझते हैं। अब इसका फैसला भी क्या है ? निन्दा करते हैं तो भी आफत, और प्रशंसा करते हैं तो भी मुसीबत । - ___ यह सब वहम हैं । ये नजरें क्यों लग जाएँगी? यदि जीवन में बल और शक्ति का स्रोत बह रहा है, तो मनुष्य की आँखें तो क्या हैं, राक्षसों की आँखें भी घूरेंगी, तो भी कुछ नहीं होने वाला है। दुनिया भर के देवता मिल कर भी कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे। सत्यमय जीवन तो यमराज की आँखों को भी चुनौती देने वाला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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