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________________ सत्य दर्शन / १३७ हम उनकी ओर गहरे दर्द की भावना लेकर सोचेंगे, तो मालूम होगा कि देश किधर जा रहा है। उसके प्रेम की लहर किधर चली गई है। भरे को और अधिक भरने का प्रयत्न हो रहा हैं, खाली को भरने का कोई प्रयत्न नहीं किया जाता । भगवान् को दीपक आवश्यक : __ भगवान् की स्तुति करते है, तो कहते हैं कि तेरे ही दिव्य प्रकाश से चन्द्रमा और सूर्य प्रकाशमान हो रहे हैं, तेरी ही अलौकिक ज्योति विश्व को आलोकित कर रही है। इस प्रकार उसकी गुणगाथा गाते हैं और फिर उसी के आगे घी के दीपक जलाते हैं और वर्षों तक जलाये चले जाते हैं। उन्हें सोचने का अवकाश ही नहीं कि जिसकी रोशनी से सूरज और चाँद रोशन हैं, उसके सामने घी का एक दीपक जला देने से उसकी क्या रोशनी बढ़ जायेगी। साधुओं के विषय में भी मालूम होता है कि जिनकी गद्दियाँ जोरदार चल रही हैं, जिनके आसपास खूब धूमधाम रहती है और जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कहीं भी कर सकते हैं, उन्हें तो हजारों आग्रह किए जाएँगें, पात्रों के लिए और वस्त्रों के लिए, किन्तु उस सम्प्रदाय का एक छोटा साधु है, जिसने संभवतः प्रतिष्ठा की ऊँची भूमिका प्राप्त नहीं की है, वह आपके पास आता है तो उसकी आवश्यकताओं के लिए आपको सोच-विचार में पड़ जाना पड़ता है। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि-समुद्र में वर्षा की जा रही है। जहाँ आवश्यकता नहीं है, वहाँ तो दबादब पूर्ति किए जा रहे हैं और जहाँ आवश्यकता है, वहाँ पूर्ति नहीं की जा रही है। "वृथा वृष्टिः समुद्रेषु । वृथा तृप्तेषु भोजनम्" मैंने देखा है, जो साधु आचार-विचार में भी अच्छे हैं, किन्तु जो अपने-आप में मग्न रहते हैं और इस कारण जिन्हें समाज में ऊँचापन नहीं मिला है, उनका पात्र टूट गया, तो उसकी पूर्ति भी मुश्किल से ही होती है। इस तरह बड़ी गद्दियों की पूजा के लिए । आप आँख बन्द करके हजारों-लाखों भी खर्च करते जाएँगे, किन्तु, गृहस्थ-समाज में, जहाँ आवश्यकता है, एक पैसा भी नहीं देंगे और न साधु की आवश्यकता की ही परवाह करेंगे। बहुत-सी संस्थाएँ हैं-जहाँ लाखों का कोष जमा पड़ा है और सड़ रहा है और ब्याज चल रहा है। फिर भी उस संस्था को तो दान दे देंगे, किन्तु जो संस्थाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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