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________________ १२८/ सत्य दर्शन फोड़ा हुआ और उसकी वेदना से वह व्याकुल हो गया। उसका लड़का उसे दिल्ली ले गया और फिर आगरा लाया । यहाँ वह अस्पताल में दाखिल हो गया। उसका लड़का अपने प्रभाव में था ही। वह अपने पास आया । बोला-पिताजी की हालत अच्छी नहीं है, किन्तु एक आवश्यक मुकदमे की पेशी में मुझे जाना पड़ेगा। अव्वल तो कोई जरूरत पड़ेगी नहीं, कदाचित् कोई मौका आ जाए, तो सान्त्वना का ध्यान रखना। आगरा के भाइयों ने व्यवस्था का भार अपने सिर ले लिया । अगले दिन पूज्य गुरुदेव, अस्पताल पहुंचे। हालाँकि उनके साथ हमारा संघर्ष रहा था, फिर भी मनुष्यता की भावना दोनों तरफ थी। तो जब हम उसके पास पहुँचे, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा-“महाराज जब आप मेरे यहाँ आए थे, मैं आपसे विरोध-स्वरूप सघर्ष करता रहा था, परन्तु आप तो दर्शन देने को चले आए ?" हमने हँस कर कहा- “सत कभी भी विरोध की भाषा में नहीं सोचता, उसका सोचना तो मानवता की भाषा में होता है। तुम जैन न सही, मानव तो हो ? घबराना मत सब व्यवस्था हो जाएगी।" दूसरे दिन मालूम हुआ कि आगरा में उसका इलाज नहीं हो सकता । इलाज पटना में हो सकेगा। वहाँ रेडियम की सुई से इलाज होगा। वह मेरे पास आ गया। आप जानते हैं कि मनुष्य जब दुःख में होता है, तो उसकी चेतना व्याकुल हो जाती है। उसने कहा- "मुझे पटना जाना है, क्या करूँ ?" दो-चार भाइयों ने उसे आश्वासन देते हुए कहा-"हम आपकी सारी व्यवस्था कर देंगे।" ___वह जाने को तैयार था। माँगलिक सुन ही रहा था कि इतने में एक भाई वहाँ आया । उसने पूछा-“पटना जा रहे हो, तो वहाँ किसी से जान-पहचान भी है?" उसने उत्तर दिया-"मैं तो किसी को नहीं जानता-पहचानता।" तब उस भाई ने कहा-'अच्छा, जरा ठहर जाइए। वहाँ मेरे एक प्रेमी हैं और उनकी अच्छी फर्म है। मैं चिट्ठी लिख देता हूँ और आप सीधे उन्हीं के घर चले जाना ।" चिट्ठी लेकर वह रवाना हो गया । पटना स्टेशन पर उतरा और जिसके नाम पर चिट्ठी थी, उनके भवन के सामने पहुँचा । बेचारा देहाती आदमी था। विचार में पड़ गया कि बड़े आदमी के घर कैसे जाऊँ ? वह सेठ युवक था और एक बहुत बड़ी फर्म का मालिक था। वह बुड्ढे को देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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