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________________ १०८ / सत्य दर्शन और पता लगे कि वह कदम-कदम पर झूठ बोलता है, उसमें प्रामाणिकता नहीं है, वह अपने कर्तव्य के प्रति भी उत्तरदायित्व नहीं निभाता है और वहाँ भी छल-कपट से काम लेता है, तो श्रावकपन की भूमिका के उच्च होने पर भी आप उस श्रावक की निन्दा ही करते हैं । इसी प्रकार जिस समाज में ऐसा विडम्बनामय जीवन होता है, उसका भी उपहास होता है। एक-एक व्यक्ति का जीवन ही समाज का जीवन कहलाता है और जनता व्यक्तियों के जीवन की तराजू पर ही समाज के जीवन को तोलती है । ___ तो, जो व्यक्ति दुकान पर बैठ कर भी प्रामाणिक नहीं है, इधर-उधर के अन्य कार्यों में भी प्रामाणिक नहीं है, उसके सम्बन्ध में आप विचार करेंगे कि उसकी सामायिक और पौषध आदि साधनाएँ व्यर्थ हैं, क्योंकि उसने जीवन का वह सत्य प्राप्त नहीं किया है, जिसके द्वारा जीवन का अंग-अंग चमकने लगता है। आपके जीवन में कोई कला नजर नहीं आती है, तो इस पर आप भले ही विचार न करें, किन्तु समाज की और दुनिया की आँखें खुली हैं और वे आपके कदम-कदम को नाप रही हैं। आपकी अप्रमाणिकता आपको, समाज को और धर्म को बदनाम करेगी और तीर्थंकरों को भी बदनाम किए बिना नहीं रहेगी। - इस रूप में सोचते हैं, तो मालूम होता है कि सत्य के अभाव में जीवन का क्या मूल्य है ? उस चीज को हम अपने सम्बन्ध में भी कहते हैं। कोई आपके लिए ही मोक्ष का दरवाजा नहीं खोलना है। हम साधु भी उसी पथ के पथिक हैं। आखिरकार हमारा जो साधुवर्ग है, उसमें कितना ही क्रियाकाण्ड क्यों न हो और कितना ही घोर तपश्चरण हो, बाह्य जीवन में शरीर चाहे तपस्या से गल-गलकर सूख गया हो, किन्तु यदि उसमें सत्य नहीं है-सिर्फ बोलने का सत्य नहीं वरन् किए जाने वाले कर्तव्य के प्रति वफादारी नहीं आई, तो भले ही कोई महीने-महीने का तप करे, वफादारी और ईमानदारी के अभाव में जिस महासाधना के लिए तपश्चरण किया जा रहा है, उसकी सिद्धि नहीं हो सकती। वह तपश्चरण उसके जीवन को ऊँचा नहीं उठा सकता, गला दे सकता है। एक आदमी इतना बीमार और कमजोर है कि उसे मूंग की दाल का पानी भी इजम नहीं होता । ऐसी स्थिति में उसे यदि कुश्ता खिलाया जाए या अन्य पौष्टिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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