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दयामय ! ऐसी मति हो जाय ।
कल्याण-कामना,
त्रिभुवन की
दिन-दिन बढ़ती
औरों के सुख को सुख समझें, सुख का करें उपाय।
अपने दुःख सब सहें, किन्तु परदुःख नहीं देखा जाय ।।
भूला-भटका उल्टी मति का,
जो है
उसे सुझाएँ सच्चा
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जाग।।
जन-समुदाय |
सत्पथ,
निज सर्वस्व
सत्य धर्म हो, सत्य कर्म हो,
सत्य ध्येय
सत्य - साधना में ही
जीवन
अब
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लगाय ॥
बन
'प्रेमी',
लग
जाय।
जाय ॥
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विनय
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