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नेमिनाथ और राजुल
__ जूनागढ़ के राजा उग्रसेन थे, जिनकी पुत्री का नाम राजीमती था। राजीमती को प्यार से राजुल भी कहते थे। वह बहुत सुन्दर और चतुर राजकुमारी थी। उसका विनाह, द्वारिका के यादव-वंशी राजकुमार श्री नेमिकुमार के साथ होना निश्चित हुआ था। श्री नेमिकुमार, राजा समुद्रविजय के पुत्र थे। उनकी माता का नाम शिवादेवी था। श्रीकृष्ण वासुदेव के ताऊ के लड़के थे, अत: श्रीकृष्ण के भाई थे।
श्री नेमिकुमार रथ में बैठकर बारात के साथ उग्रसेन के द्वार पर तोरण के लिए जा रहे थे। जब रथ राजमहल के पास पहुँचा तो उन्होंने बाड़े में करुण स्वर से चिल्लाते हुए बन्द दीन पशुओं को देखा। उन्हें बन्धन में देखकर उनके मन में बड़ी दया उत्पन्न हुई।
श्री नेमिकुमार ने सारथी से पूछा- “यह पशुओं का समूह एक ही जगह किसलिए इकट्ठा किया गया है ?'' सारथी ने कहा- "आपके विवाह महोत्सव पर मारने के लिए इन पशुओं को इकट्ठा किया गया है। आखिर यह बारात है। इसमें बहुत से अतिथि माँसाहारी भी तो आए हुए
सारथी की बात सुनकर श्री नेमिकुमार चिन्तित हो गए ! उनके कोमल मन में दया का सागर लहरा उठा। वे विचारने लगे कि - "ये पशु वन में
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