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एक उदार जैन महिला यह कहानी, खाली कहानी नहीं, आठ सौ वर्ष पूर्व का सच्चा घटिव इतिहास है। जब तक इतिहास जीवित रहेगा, तब तक जैन-समाज के गौरव को अजर-अमर बनाये रखेगा। सारा संसार एक मुख से कहेगा—यदि कोई आदर्श नारी हो, तो ऐसी हो। ___ हाँ, तो कर्णावती नगरी के एक जैन-धर्म स्थानक में कोई परदेश युवक उदास मुँह लिए बैठा था। वह गरीब था, आश्रय की खोज में था। वह श्रद्धा से जैन-धर्म का पालन करने वाला था। __ सौभाग्य से उसी समय वहाँ एक जैन महिला लक्ष्मी बहन, जिसे वहाँ की लोक भाषा में लाछीबाई कहते थे, धर्म-ध्यान करने आ गई। धर्म-ध्यान करके, लक्ष्मी ज्यों ही घर लौटने को हुई, उसकी नजर उस परदेशी पर पड़ी। उसने बड़े प्रेम के साथ धीमे से पूछा- 'भाई ! कहीं बाहर से आये हो क्या ?'
'हाँ , बहन ! मारवाड़ से आया हूँ!' 'अकेले हो ?' 'नहीं, साथ में मेरे बाल-बच्चे भी हैं।' 'यहाँ किसलिए आए हो ?'
'कहीं कोई काम-धन्धा मिल जाए तो करूँ, इस विचार से यहाँ तक आया हूँ।'
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