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चार गति भारत के प्राचीन धर्माचार्यों ने संसारी जीवों को नरक -गति, तिर्यंच-गति, मनुष्य - गति, और देव-गति, इस प्रकार चार गतियों में बाँटा है। गति का अर्थ है, जीव की वह खास अवस्था, जिसे पाकर वह अच्छे-बुरे कर्मों का फल भोगता है, सुख-दुःख पाता है। जब तक उस अवस्था में भोगने योग्य बाँधे हुए कर्मों को भोग नहीं लेता, तब तक वहाँ से मर कर दूसरी अवस्था में नहीं जा सकता ।
नरक -गति
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नरक -गति, इस भूमि के नीचे है। कुल सात नरक हैं जो एक-दूसरे के नीचे हैं। सबसे बड़ी सातवीं नरक है। नरक में दुःख ही दुःख हैं। सुख तो नाम मात्र को भी नहीं है। नरक के जीवों को भूख, प्यास, सरदी गरमी, छेदन-भेदन, मारपीट आदि नाना प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं नरक में जनम लेने वाले जीवों को नारकी कहते हैं। नारकी जीवों वे शरीर आधे जले हुए मुर्दे के समान बड़े ही भद्दे और बेडौल होते हैं उनके शरीर से बड़ी भयंकर दुर्गन्ध आती है। नरक में कौन जाते हैं. जो लोग बड़े निर्दय होते हैं, शिकार करते हैं, माँस खाते हैं, शरा पीते हैं, वे नरक में जाते हैं, बुरे कर्मों का बुरा फल भोगना ही होता है
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