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पुरुष की शक्ति : ७५
केशी श्रमण विहार करते-करते श्वेताम्बिका पधार गए और मृगवन में विराजित हुए । प्रजाजन हजारों की संख्या में आकर वाणी का अमृत पान करने लगे । प्रवचन- शैली, मधुर और आकर्षक थी । प्रतिपादन पद्धति अद्भुत और अनुपम थी ।
परदेशी को अश्व शान्त और श्रान्त
एक दिन चित्त, अवसर देखकर राजा परीक्षा के बहाने मृगवन की ओर ले आया । होकर चित्त और परदेशी मृगवन में चले गए। वहाँ पर केशी श्रमण जनता को धर्म देशना सुना रहे थे । राजा ने घृणा भरी दृष्टि से एक बार केशी श्रमण की ओर देखा । परन्तु केशी सामान्य सन्त नहीं थे । वे चार ज्ञान के धर्त्ता और देश-काल के ज्ञाता थे । उनके संयम और तप का प्रभाव अद्भुत था । चित्त की प्रेरणा से, मुनि के तेज से और अपनी जिज्ञासा से वह कैशी श्रमण के चरणों में पहुँच गया। मुनि की धर्म देशना का उसके मानस पर प्रभाव पड़ा। उसने केशी श्रमण से छः प्रश्न किए थे । तर्क- पूर्ण समाधान पाकर वह प्रसन्न हो गया । उसके जीवन में आज यह चमत्कार था । उसकी चिर-संचित शंकाओं का आज मौलिक समाधान मिल चुका था ।
परदेशी के जीवन की दिशा बदल गई । उसने वहीं पर बारह व्रत अंगीकार कर लिए। वह श्रावक बन गया । वह अधर्म से धर्म की ओर, क्रूरता से कोमलता की ओर अपनी प्रगति और विकास करने लगा । वह अभय, अद्वेष और अखेद होकर धर्म की साधना करने लगा । प्रजाजन भी अब उसे श्रद्धा और भक्ति के नेत्रों से देखने लगे थे । परदेशी जितना क्रूर, कठोर और उग्र था, अब उससे भी अधिक दयालु, कोमल और नम्र बन गया था । केशी श्रमण का पधारना सफल हो गया । चित्त की चिर-संचित भावना भी पूरी हुई ।
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