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________________ पुरुष की शक्ति : ४१ युद्ध की ज्वाला में महा योद्धा चेटक भी मर गया । युद्ध का परिणाम कभी सुखद और सुन्दर नहीं होता । - निरयावलिका सुत्त, अ० १/ चक्रवर्ती बनने की लालसा ! जो मनुष्य अपनी शक्ति से, अपनी योग्यता से अधिक फल की कामना करता है और उस फल को समय से पूर्व चाहता है, वह कभी अपना विकास नहीं कर सकता । एक बार श्रेणिक का पुत्र कोणिक, भगवान् महावीर के दर्शनों को आया । भगवान् के श्रीचरणों में वन्दना करके बोला : "भंते, जो चक्रवर्ती अपने जीवन में काम - भोगों का परित्याग नहीं कर सकता, वह मरकर कहाँ जाता है ?" "सातवीं नरक में," भगवान् ने शान्त स्वर में कहा । कोणिक अहंकारवश अपने आपको चक्रवर्ती समझ रहा था। पूछा: "भंते, मरकर मैं कहां जन्म लूँगा ?" "छठीं नरक में !" " सातवीं में क्यों नहीं, भंते ?" "तू चक्रवर्ती नहीं हैं, इसलिए !" Jain Education International rator ने अधीर होकर पूछा : "भंते क्या मैं चक्रवर्ती नहीं बन सकता ! मेरे पास इतनी विशाल सेना है, इतना विपुल वैभव "है, तब भी ! " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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