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४० : पीयूष घट
है।" वे दोनों हार हाथी और अपनी रक्षा के लिए अपने नाना चेटक के पास जा पहुंचे।
चेटक वैशाली गणराज्य के अधिपति थे। कोणिक एवं हल्ल और विहल्ल की माता चेलना, चेटक की पुत्री थी। बड़े प्रयास से श्रेणिक ने इसके साथ विवाह किया था। रानी चेलना की सतत प्रेरणा से ही राजा श्रेणिक जैन-धर्म में अनुरक्त बना था।
कोणिक का क्रोध उभर आया, जवकि उसने हल्ल और विहल्ल का व्रत सुना। कोणिक हार और हाथी, और बह भी हल्ल-विहल्ल के साथ लेने को तुल गया; और उधर चेटक भी हार, हाथी तथा हल्ल-विहल्ल को संरक्षा के लिए सर्व प्रकार से सनद्ध था !
दोनों पक्षों की सेना रणभूमि पर छा गईं। घनघोर, भयंकर दारुण युद्ध प्रारम्भ हो गया, ! अश्व सेना, रथ सेना, गज सेना तथा पदाति सेना-सभी युद्ध में उतरी। चेटक ने अपने अमोघ वाणों से कालीकुमार प्रभृति दस कुमारों को मार डाला। इससे कद्ध होकर कोणिक ने महाशिला कण्टक और रथ-मुसल संग्राम की रचना की। अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर कोणिक युद्ध में भिड़ गया था। चेटक हार गया और कोणिक जीत गया। परन्तु विजेता बनने पर भी वह पराजित के बराबर ही था।
क्योंकि उसे हार, हाथी और हल्ल-विहल्ल नहीं मिल सके। बंक हार को देव ले गया, हाथी आग में जला दिया गया और हल्ल-विहल्ल इस स्वार्थ पूर्ण एवं बर्बर संसार का परित्याग करके 'भगवान् महावीर के पास दीक्षित होकर आत्म-साधक बन गए थे।
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