SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८ : पीयूष घट कोणिक चम्पा में रहने लगा। उसके सहोदर भाई हल्ल-विहल्ल भी चम्पा में ही रहते थे। एक बार भगवान महावीर विहार करते-करते चम्पा नगरी पधारे। राजा कोणिक को सूचना मिली। कोणिक भगवान् का भक्त था। उसने दर्शन व वन्दन को जाने का संकल्प किया। सम्पूर्ण नगर सजाया गया। विशाल सेना, विपुल वैभव और समग्र अन्तःपुर के साथ सज-धजकर कोणिक भगवान की धर्मसभा में आया। भगवान् को वन्दना करके कोणिक बैठ गया। वह एकाग्र और एकनिष्ठ होकर भगवान् की कल्याणी वाणी सुन रहा था। भगवान् कोमल, मधुर और शान्त स्वर में, सर्वजन सुलभ अर्ध-मागधी भाषा में बोल रहे थे : "यह जीवन-जिसके सौन्दर्य पर मनुष्य मुग्ध है, वह जल में बुद्बुद के तुल्य है।" .. "यह जीवन-जिस पर मनुष्य को गर्व और अहंकार है, वह कुशा के अग्र भाग पर स्थित जल-बिन्द के समान चंचल है।" ___“जीव है, अजीव है। जीव का बन्ध भी है, जीव का मोक्ष भी है। पाप भी है, और पुण्य भी है।" अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और बुरे कर्मों का फल बरा होता है।" भगवान् को मधुर वाग्धारा पर श्रोता मुग्ध थे निमग्न थे, प्रसन्न थे। परिषदा के चले जाने पर कोणिक भी वन्दन करने को भगवान् के समीप में आया, और नम्र स्वर में बोला : "भते, आपका निर्ग्रन्थ प्रवचन श्रेष्ठतम है, वह पवित्रतम है, वह जीवन को स्वच्छ, निर्मल तथा पावन करने वाला है। भंते, मैं उसमें आस्था, निष्ठा और श्रद्धा करता हूँ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy