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पुरुष की शक्ति : ३७
में आने से लेकर पालन-पोषण और उसके विवाह तक की घटनाओं को कह सुनाया । कोणिक ने अभी तक जिस दृष्टि से पिता को देखा था, यह दृष्टि उससे सर्वथा भिन्न थी ।
पिता का मधुर स्नेह, जीवन रक्षा और शिक्षा - ये सब बातें कोणिक के जीवन में नया मोड़, नया ढंग और नई दिशा देने लगीं । चेलना के मातृ-स्नेह से उद्भूत उद्गारों ने कोणिक को जीवन में गहरा उतरने को विवश कर दिया। वह तुरन्त तेज गति से पिता को मुक्त करने चल पड़ा। अपने क्रूर कर्म पर वह अन्दर ही अन्दर जल रहा था। नहीं सोच सका वह, मैं जो करने जा रहा हूँ, उसका विपरीत परिणाम भी हो सकता है ।
श्रेणिक ने कोणिक को उग्र रूप में आते देखा, तो घबरा गया । उसने सोचा : "यह न जाने किस मौत से मुझे मारेगा । मरना तो है ही, स्वयं क्यों न मर जाऊँ !" तालपुट विष खाकर श्रेणिक ने कोणिक के पहुँचने से पहले ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी । कोणिक अत्यन्त सन्तप्त हो उठा। वर्षों से संचित क्रूर कर्मों का हिम-पटल पश्चाताप के आतप से पिघलपिघल कर आँसुओं के रूप में बह चला ! विलाप, वेदना और रोदन से सारा महल शोक सन्तप्त हो गया !
पिता की दारुण मृत्यु ने कोणिक के जीवन को बदल दिया । दृष्टि बदली, तो सृष्टि ही बदल गई । नजर के फेर से दुनिया बदलती है । उद्धत, क्रूर, अहंकारी कोणिक अब विनीत, मृदु और नम्र बनने का प्रयत्न करने लगा। अपने विशाल राज्य के उसने ग्यारह सम विभाग करके अपने भाइयों को बाँट दिए । पिता की मृत्यु के कलंक को धोने के लिए या भूलने के लिए उसने मगध को छोड़कर अंग देश की चम्पा को अपनी राजधानी बनाया ।
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