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________________ नारी का मन : ३१ तीनों ने मिलकर अरणक को अधीर बना दिया । वह एक गृह की छाया में खड़ा हो गया ! संयम की कठोरता को वह मन ही मन अनुभव कर रहा था। ___ सहसा एक तरुणी नारी ने उसे गली में क्लान्त खड़ा देखा। नारी रूप देखती है। अपनी दासी को भेजकर उसने अरणक को ऊपर बुला लिया! पूछा : "आप कौन हैं ? और क्या चाहते हैं ?" "मैं भिक्ष हूँ, और भिक्षा लेने आया हूँ।" नारी ने मधुर स्वर में पूछा : "आप भिक्ष क्यों बने ? यह सुन्दर शरीर क्या तप के लिए है ? यह तारुण्य निष्फल क्यों खोते हो?" नारी के वचनों का माधुर्य पुरुष को वेभान कर देता है ! अरणक योग को भूल गया और भोग के दल-दल में धंस गया! अरणक भोग के अन्धकार में खो गया. वह मार्ग भूल गया। इधर स्नेही साथी साधुओं ने बहुत देखा भाला, पर अरणक का कहीं पता नहीं लगा। साध्वी माता भद्रा को ज्ञात हुआ : "अरणक भिक्षा को गया था, अभी लौटा नहीं।" माला की ममता जाग उठी। वह नगरी को गली-गली में, डगर-डगर में अरणक को खोज रही थी। जिस किसी को भी वह मार्ग में देखती उसे अरणक का परिचय देकर पूछती : "क्या तुमने देखा है, कहीं पर मेरा लाल ।" संसार में सभी प्रकार के मनुष्य होते हैं ! दूसरे के सन्तान पर हँसने वाले भी हैं, तो सहानुभूति रखने वाले भी हैं। परन्त अरणक का पता नही लग सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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