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________________ १८ : पीयूष घट भिक्षुओं का समान वर्ण, समान रूम, समान आकृति और समान वय होने से देवकी रानी को उनकी भिन्नता का परिबोध न हो सका। भिक्षओं को तीसरी टोली से देवकी ने जिज्ञासा भाव से विनम्र शब्दों में पूछा : "भंते विशाल द्वारिका में अन्यत्र भिक्षा सुलभ नहीं है ? आपको बार-बार (तोन-तीन बार) मेरे यहाँ पर आने का कष्ट करना पड़ रहा है ?" भिक्षुओं ने शान्त भाव से कहा : "देवानुप्रिय, हम सब एक ही नहीं हैं । अलग-अलग हैं । जो पहले आये, वे हम नहीं ! दूसरे आये, वे पहले नहीं। पहले वाले पहली ही बार आए हैं, तीसरी बार नहीं । वैसे हम छहों भगवान् नेमिनाथ के शिष्य हैं । भद्दिलपुर नगर के नाग गाथापति हमारे पिता हैं। देवकी ने यह सुना तो अतीत की एक मधुर स्मृति ताजा हो गई। सोचने लगी : "एक बार पोलासपुर नगर में अतिमुक्त श्रमण ने मुझ से कहा था : देवकी, तु नल कुबेर जैसे सुन्दर, दशनीय और कान्त आठ पुत्रों को जन्म देगी । भरत क्षेत्र में अन्य किसी माता को इतने सुन्दर पुत्रों को जन्म देने का सौभाग्य नहीं मिलेगा तो क्या, मुनि की वह वाणी मिथ्या है ? मैं भगवान् से पूछूगी। इन छहों पुत्रों को जन्म देने वाली माता धन्य है। कितने सुन्दर सुकोमल पुत्र हैं ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003423
Book TitlePiyush Ghat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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