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१५८ : पीयूष घट
यह भगवान् का कथन है, और यह सत्य है।" गंगदेव अपने आग्रह को न छोड़ सका।
कालान्तर में वह राजगृह गया। वहां नदी के तीर पर एक यक्षायतन था। वहाँ पर गंगदेव अपना उपदेश देने लगा। यक्ष कुपित हो गया।
बोला--"तेरा कथन असत्य है। यक्ष ने क्रोध के स्वर में कहा-तू इस असत्य पथ को छोड़ दे, नहीं तो तेरा अहित होगा।"
विचार करने पर गंगदेव को अपनी भूल का परिबोध हो गया। अपने मिथ्या विचारों की आलोचना करके वह फिर शुद्ध हो गया।
-उ० अ० ३, नि० गा० १७१.
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