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भूले-भटके राही : १४६
वह बोला-"मुझे क्यों अपमानित करते हो ? मेरा अपराध क्या है ?"
श्रावकों ने कहा-"न अब अपमानित होने वाला रहा, और न अपमान करने वाले ही रहे। आपके मत में ता सब क्षणिक है। फिर कौन किसका अपराधा है? आपके मत में तो कोई किसी का अपराधो है ही नहीं।"
श्रावकों की बातों को सुनकर अश्वमित्र अपनो भूल को समझ गया। अपने मिथ्या विचारों को आलोचना करके वह पुनः शुद्ध हो गया। भगवान महावीर के सिद्धान्तों में फिर से स्थिर हो गया।
-उ० अ० ३, नि० गा १७०/.
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