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स्वर्ग - नरक
स्वर्ग कहाँ है, नरक कहाँ है ? पूछ रहे हैं, कब से जन - जन । किन्तु, न देख रहे हैं कैसा, है अपने में, अपना ही मन ।।
स्वच्छ - निर्मल अपना ही मन, दिव्य स्वर्ग है मंगलकारी । हिंसक, क्रूर, विकारी अपनामन ही है नरक अमंगलकारी ।।
और, न कोई दुःख - मूल है, दुःख - मूल है, निज अज्ञान । दुःख मुक्त हो, सुख - पाना तोनिज स्वरूप पर रखिए ध्यान ॥
गम
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खागर के मोती।
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