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सास की सेवा
एक गाँव में माँ, बेटा और पतोहू (पुत्र-वधु) तीनों एक घर में रहते थे। पतोहू जरा खचड़े स्वभाव की थी, सास को दुःखी रखती । पति, स्त्री को डॉट-डाँट कर बेहया न बनाकर, कुशलता से समझाने के किसी अच्छे मौके की तलाश में था। वह न माँ का पक्ष लेता, न पत्नी का। अपने को इन दोनों के झगड़े से प्रायः अलग ही रखता था।
स्त्री अपनी सास को टूटे कठवत (कछुए) में खाना दिया करती थी। संयोग वश, एक दिन माँ के हाथ से कठवत गिर कर दो टुकड़े हो गया। बेटे ने माँ को डाँटा। लड़के की इस हरकत से उसे अचंभा हुआ । वह बोली 'बेटा ऐसा क्या अपराध हो गया, इस कठवतिया के टूटने में ? यह तो पहले से ही चिरोई हुई थी। दो पैसे का कठवत टूटने पर इतनी नाराजगी ?'
बहू भी सुन रही थी, उसे भी अपने पति की माँ के प्रति डाँट पर ताज्जुब था। मन में खुशी भी थी कि माँ-बेटे की कहा-सुनी हो रही है। बेटे ने कहा-. "माँ, कठवत के टूटने से मेरी नाराजगी का कोई सम्बन्ध नहीं है। मुझे तो इसलिए बुरा लगा कि तुमने कठवत नहीं, “एक परम्परा ही तोड़ दी।" __माँ ने पूछा-कैसे ? वह बोला-'तुम्हें तुम्हारी बहू टूटे कठवत में खाना देती है, तो परम्परया जब इसकी बहू आएगी तो इसे भी टूटे कठवत में खाना देगी। उसके आने तक यह टूटा कठवत घर में मौजूद रहना चाहिए था, जिससे वह सारी परंपरा देख - समझ ले कि सास के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है ?" सास की सेवा :
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