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________________ अध्ययन बड़ा या अनुभव ? एक राजकुकार जो वर्षों के लम्बे अभ्यास के बाद ज्योतिष शास्त्र की विद्या में पारंगत हो चुका था, अपने पिता के सामने परीक्षा देने बैठा ! - पिता ने मुट्ठी में कुछ दबा रखा था, पूछा --- "बताओ, मेरी मुट्ठी में क्या है ?" राजकुमार ने लम्बी गणित करने के बाद उत्तर दिया-"आपकी मुट्ठी में जो चीज है वह गोलाकार है और उसमें पत्थर जड़ा हुआ है ।" "हाँ, ठीक है, पर बताइए क्या चीज है ?" - राजा ने चीज का नाम जानना चाहा । राजकुमार ने बहुत सोचा, कुछ ध्यान में न आया । ज्योतिषशास्त्र इतनी दूर तक तो ले आया था, परन्तु आगे तो अपने अनुभव और चिन्तन को ही दौड़ लगानी थी ! और वह राजकुमार में थी नहीं । बोला- "बताऊँ, चक्की का पाट है । " अँगूठी को चक्की का पाट बताने वाला राजकुमार क्यों हँसी का पात्र हुआ ? उसमें यह तर्क बुद्धि न थी कि चक्की का पाट मुट्ठी में बन्द कैसे हो सकता है ? शास्त्र अध्ययन के साथ प्रतिभा का स्वतन्त्र विकास भी आवश्यक है । ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only सागर के मोती : www.jainelibrary.org
SR No.003422
Book TitleSagar ke Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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