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________________ असली धन भगवान् बुद्ध एक वृक्ष के नीचे ध्यानावस्थित बैठे हुए थे। साहसा जोर-जोर से रोने - चिल्लाने की आवाज कानों में पड़ी। भगवान् बुद्ध ने नेत्र खोले । देखा,एक आदमी बदहवास चिल्लाता हुआ उनकी ओर भागा आ रहा है। पास आने पर भगवाम् ने पूछा-"भद्र ! इतने विकल क्यों हो?" ___"भगवान् मैं बर्बाद हो गया ! वह देखिए, डाकू मेरे परिवार को लूट रहे हैं। लाखों के रत्न आभूषण छीन लिए हैं "आगन्तुक ने आर्त मुद्रा में हाथ जोड़ते हुए कहा। बुद्ध शीघ्रता से डाकुओं के पास पहुंचे। उन्हें उपदेश दिया। डाकू बुद्ध के उपदेश से इतने प्रभावित हुए कि लूटा हुआ सब धन धनिक को लौटा दिया और भविष्य में डाका डालने का परित्याग कर दिया। ____ बुद्ध ने अब धनिक से कहा- "तुम इसी धन के लिए इतने विकल हो रहे थे। यह धन तो आज है, कल नहीं। यह एक दिन कमाया जाता है, और खोने के बाद एक दिन फिर कमाया जा सकता है। परन्तु तुम्हारा जो अनमोल सच्चा धन है, वह दिनरात प्रतिक्षण लुटा जा रहा है, तुम उसके लिए तनिक भी विकल नहीं होते !" "देव ! मेरा वह कौन - सा धन है, जो दिन - रात प्रतिक्षण लुट रहा है, परन्तु जिसका मुझे पता भी नहीं है ?" सागर के मोती: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003422
Book TitleSagar ke Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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