________________
जड़ न उखाड़िए परम्परागत अनुश्रुति है कि एक वार भगवान् बुद्ध अपने संघ सहित कौशल में गए। वहाँ एक जमींदार ने उन्हें भोजन के लिए निमन्त्रित किया । भोजन के बाद वह बुद्ध सहित संध के सब लोगों को अपने बाग की सैर कराने ले गया। बाग बड़ा सुन्दर था, परन्तु उसके बीचों-बीच एक बड़ा - सा स्थान था, जिस पर एक भी पेड़ न था। संघ के लोगों ने जमींदार से पूछा'बात क्या है ? इस स्थान पर वृक्ष क्यों नहीं है ?'
___ जमींदार ने नम्रतापूर्वक कहा-"महात्मागण ! बात यह थी कि जिन दिनों यह बाग लगाया जा रहा था, उन दिनों मैंने एक लड़के को इस बाग पर नियुक्त किया था कि वह वृक्षों को सींचे। पहले तो वह सब वृक्षों को एक समान पानी देता रहा, बाद में उसे ध्यान आया कि इससे क्या लाभ ? जिस पौधे की जड़ जितनी बड़ी हो, उसे उतना ही अधिक पानी देना चाहिए, और जिसकी जड़ छोटी हो, उसे उतना ही कम ? उसने यही करना शुरू किया। वह पहले पौधों की जड़ उखाड़ कर उसकी लम्बाई देखता, और बाद में उन्हें पुनः गाड़ कर उसी अनुपात से पानी देता । परिणाम यह हुआ, सभी पौधे सूख गए।
__ मनुष्य को अति तर्क के फेरे में न पड़ना चाहिए। किसी को कुछ देना हो, तो सहज भाव से अपनी शक्ति अनुसार दे डालिए। लम्बी बहस के द्वारा उसकी जड़ उखाड़ कर देखने का प्रयत्न करना ठीक नहीं है। किसी का गुप्त भेद खोलकर क्या लेना है ? ऐसा करने से उपकार का बाग सूख जाता है ।
सागर के मोती:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org