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________________ श्रावक शब्द श्रवण अर्थ वाले 'श्रु' धातु पर से बना है । जो श्रवण करे; अर्थात् जो आत्म-कल्याण के प्रशस्त मार्ग को सुनें, वे श्रावक और श्राविका कहे जाते हैं । इनको उपासक और उपासिका भी शास्त्र में कहा गया है । पाँच अणुव्रत हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह —ये प्रसिद्ध पाप हैं । साधक का कर्त्तव्य है कि वह इन पाँच पापों से बचकर चले । परन्तु गृहस्थ साधक इन पाँच पापों का सर्वथा परित्याग नहीं कर सकता है । अतः वह इनका अपनी-अपनी योग्यता एवं शक्ति के अनुसार अंशतः त्याग करता है । वह स्थूल हिंसा का त्याग कर सकता है । सूक्ष्म हिंसा का नहीं । पाँच स्थावर जीवों की हिंसा का पूर्ण रूप से त्याग वह नहीं कर सकता । त्रस जीवों में भी वह निरपराध जीवों की हिंसा का त्याग कर सकता है, सापराध की हिंसा का नहीं । अतः उसका अहिंसा व्रत साधु में महाव्रत की अपेक्षा अणुव्रत; अर्थात् छोटा व्रत कहलाता है । इसी प्रकार वह श्रावक स्थूल असत्य को, स्थूल स्तेय को, स्थूल अब्रह्म को और स्थूल परिग्रह को छोड़ सकता Jain Education International ( ८३ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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