SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वायु और वायु का आधार आकाश प्रतीत होता है, आकाश का अन्य कोई आधार नहीं । वह आप ही अपना आधार है । क्योंकि उससे बड़ा कोई पदार्थ नहीं है । परन्तु तत्त्वदृष्टि से तो आकाश ही पृथ्वी, जल, वायु आदि सभी जीव-अजीव को अपने में अवकाश देता है, आश्रय देता है, जैसे दूध से भरे कटोरे में बताशा । जिस प्रकार दूध में बताशा समा जाता है, वैसे ही सब पदार्थ आकाश में समाये हुए हैं । __आकाश के दो भेद हैं—लोकाकाश और अलोकाकाश । जहाँ तक धर्म और अधर्म आदि हैं, वह लोकाकाश है । शेष अलोकाकाश है । काल—काल; अर्थात् समय । जो पुरानी वस्तु को नयी और नयी को पुरानी करता है, वह काल है । समय, पल, घड़ी, दिन और रात, ये सब काल के कार्य हैं । पदार्थों की जो प्रतिक्षण पर्याय बदल रही है, उसका निमित्त; अर्थात् सहकारी कारण काल है । जीव चेतनामय तत्त्व जीव है । उपयोग जीव का लक्षण है । यह लक्षण संसारी जीव और मुक्त जीव सभी में घटित होता है । जीव कभी उपयोगशून्य नहीं हो सकता । जीव के मुख्य रूप में दो भेद हैं संसारी और मुक्त । समग्र चैतन्य तत्त्व का इन दो भेदों में समावेश हो जाता है । ( ७६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy